क्या है गोरखनाथ की खिचड़ी और गोरखनाथ मंदिर का इतिहास

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क्या है गोरखनाथ की खिचड़ी और गोरखनाथ मंदिर का इतिहास

खिचड़ी को विश्व विख्यात मेला मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गोरखनाथ के प्रसिद्ध गुरु गोरखनाथ के मंदिर में लगाया जाता है विख्यात नाथ संप्रदाय के लिए सिद्ध पीठ के विशाल पुंरगंण में उपस्थित होना सौभाग्य समझते हैं रात्रि पर्यंत गुरु गोरखनाथ का भजन कीर्तन और पूजन करते हैं ब्रह्म बेला पर पवित्र गोरखनाथ के शुद्ध जल में स्नान कर भगवान गोरखनाथ के दर्शन कर खिचड़ी का चढ़ावा चढ़ाते हैं हजारों मन चावल दाल की खिचड़ी का चढ़ावा चढ़ता है संयम कल तक खिचड़ी के कई पहाड़ खड़े हो जाते हैं भक्तगण खिचड़ी चावल दाल के लगे डॉन के ऊपर चलकर चढ़ावा चढ़ाने रात्रि की पूजा तक आते जाते हैं

खिचड़ी के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में वशिष्ठ पूजा होती है धर्म दर्शन संस्कृति एवं आध्यात्मिक विषयों पर सम्मेलन किए जाते हैं नाथ संप्रदाय के विशिष्ट के विद्वानों के भाषण होते हैं गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है भक्तगण भी मंदिर के प्रांगण में भोग प्राप्त करते हैं खिचड़ी के भोग अथवा प्रसाद प्रदान करने की परंपरा स्वयं गुरु गोरखनाथ ने अपने हाथों से शुरू की थी जो आज तक बिना किसी बाधा के निरंतर चल रही है

गए तो फिर वापस ना आए

कहते हैं एक बार महायोगी गोरखनाथ के मीर का भ्रमण करने के उपरांत पंजाब होकर कांगड़ा की ओर चल पड़े ज्वाला देवी के ज्वालामुखी नामक तीर्थ से होकर जब हुए जा रहे थे तभी मां जालपा देवी उनके शरणागत बाहर आई और बैठने का अनुरोध करने लगी महायोगी गोरखनाथ माता के अनुरोध को स्वीकार कर मंदिर में गए कुछ समय तक रुकने के बाद हुए उठे तो चलने लगे मां ज्वाला ने आगरा किया कि वह एक दिन रुक जाए और उनके हाथों का बना हुआ भोजन ग्रहण करें गोरखनाथ ने कहा मां ज्वाला जी आपके यहां जो भोजन बनता है वह मेरे जैसे योगी के लिए ग्रह नहीं है मां ज्वाला आपके यहां ने अनन्या विनायकर कहा जो भी आप मेरा निमंत्रण करें स्वीकार कर ले आप जैसा भोजन ग्रहण करना चाहेंगे मैं स्वयं तैयार कर खिलाऊंगी देवी के विशेष आग्रह करने पर गोरखनाथ ने कहा मुझे आपका निमंत्रण स्वीकार है परंतु भोजन का अन्य में स्वयं भिक्षा मांग कर लाऊंगा मैं जोगी ठहरा मेरे आने की कोई निश्चित तिथि और समय नहीं है देवी आप झूला जल रही हैं और मैं में हिबिया पानी खौलाएं जब भी मैं आऊंगा तत्काल ही आपको खाना तैयार कर खिलाना होगा यह आश्वासन देकर गोरखनाथ ज्वालामुखी से चल पड़े

उत्तरांचल की गढ़वाल कुमाऊँ के सुंदर पर्वतीय क्षेत्र का भ्रमण करते हुए गोरखनाथ जी ने हिमालय की तराई से रोहिणी और रात्तीवादियों के संगम में अति निकट एक मोहन हरि स्थल पर बैठ गए भिक्षा पात्र उन्होंने सामने रख दिया गांव के लोगों ने योगी के भिक्षा पात्र में अन्ना डाला परंतु खप्पर खली का खाली पड़ा रहा गांव-गांव में इस विषय की चर्चा होने लगी सारे क्षेत्र के लोग अनाज के बोरों के बोरे और खप्पर में डालने लगे परंतु भिक्षा पात्र खली का खाली ही पड़ा रहा अंत में योगी गोरखनाथ ने इस स्थल पर एक झोपड़ी को अन्न से भर दिया सार्वजनिक रूप से घोषणा करवा दी की जितने भी अभावग्रस्त लोग हैं वह इस झोपड़ी से मनचाहा अनाज ले जा सकते हैं

एक दिन गोरखनाथ ने पांच सेर चावल दाल की खिचड़ी बनाई और अपने खप्पर में भर दी खिचड़ी से उन्होंने लाखों लोगों को भरपेट भोजन करवा दिया बावजूद इसके खप्पर की खिचड़ी समाप्त नहीं हुई उपस्थित जैन सामुदायिक को गोरखनाथ ने बताया कि ज्वाला देवी के आग्रह पर भोजन को छोड़कर आपके इस प्रेम भोजन के लिए ही वहां यहां आए हैं

सैकड़ों वर्ष बीते परंतु गोरखनाथ ज्वालामुखी लौटकर नहीं आए मां ज्वाला ने उन्हें ढूंढने के लिए नागार्जुन को भेजो नागार्जुन पर्वत पर तब करने लगे जब नागार्जुन नहीं लौटे तो मन ज्वालपा ने भीम को भेजा भी घूमते घूमते इस स्थल पर पहुंचे जहां गोरखनाथ ने खिचड़ी का भोग लगाया था और अपने भक्तों को भी प्रसाद प्रदान किया था भी ने गुरु गोरखनाथ को सप्टांग प्रणाम किया और मां ज्वाला का संदेश सुनाया कि वह आपको भोजन करने हेतु बुला रही है गोरखनाथ ने प्रसन्न होकर कहा भी तुम बहुत के हो जाओ मेरी कुटिया के समीप आराम करो मैं अक्सर आने पर तुम्हें बुला लूंगा कहते हैं कि इस स्थल पर भी आज तक सोए पड़े हैं और मां ज्वाला आज भी ज्वालामुखी में भगवान गोरखनाथ की प्रतीक्षा खिचड़ी का खौला रहा है

नाथ संप्रदाय की पुस्तकों में एक शब्द मिलता है जिसमें कहा गया है कि जब कलयुग का आरंभ होगा तब गोरखनाथ की खिचड़ी का भोग पकेगा इस सामान में प्रसिद्ध मुनीजा देव गंधर्व किन्नर गण भाग लेंगे भक्तों की पंक्तियां अर्थात भोग प्रसाद अपने वालों की पंक्तियां कांगड़ा की ज्वाला के नेपाल ज्वाला तक रहेगी

जिस स्थान पर भगवान गोरखनाथ से अपना आसान बिछाया था वह स्थान आज के गोरखनाथ जिले के गौरव मंदिर की भूमि में है जहां पर गोरखनाथ बैठते हैं वहां पर उनका मंदिर है जी स्थल पर उन्होंने गोधनी जागृत की थी आज भी वहां धोनी इस तरह जागृत है जिस अखंड ज्योति को गोरखनाथ ने स्वयं जलाया था आज भी वहां ज्योति इस तरह जल रही है जिसे उन्होंने खिचड़ी का भोग ग्रहण कर खिचड़ी का प्रसाद बांटा था उसी दिन गोरखनाथ मंदिर के प्रांगण में लाखों भक्त खिचड़ी का चढ़ावा चढ़ाते हैं और खिचड़ी का भोग प्राप्त कर जीवन को सार्थक समझते हैं

वह दिन मकर संक्रांति का पावन पर्व था इस पर्व से संपूर्ण क्षेत्र गोरखमय हो गया गोरखनाथ जी लेकर नाम उसी के नाम पर पड़ा है गोरखनाथ के चमत्कारों का इतना प्रभाव पड़ा कि उसे क्षेत्र के गोरखनाथ इष्ट देव हो गए गोरखनाथ जिले की ही बात नहीं संपूर्ण भारतवर्ष को गोरखनाथ ने अपने अलौकिक कृतियां से लोग प्रभावित हुए दक्षिण से लेकर उत्तर पश्चिम से लेकर पूर्व तक का कोई ऐसा भारतीय क्षेत्र नहीं है जिस पर गोरखनाथ का प्रवाह ना हो भारतीय साहित्य में नाथ संप्रदाय हुआ उनके सिदो का विशेष प्रभाव है हिंदी जगत के कई विज्ञान विद्वानों ने गुरु गोरखनाथ से लेकर शब्द साहित्य का अच्छा अध्ययन किया हिंदी के प्रथम डी लिट सरिया डॉक्टर पितांबर दत्त बढत्वाल का यह प्रिया विश्वास था हिंदी जगत के प्रसिद्ध धर्मवीर भारती भांति प्रसाद चंदेल और पंडित परशुराम त्रिवेदी आदि ऐसे विद्वान है जिन्होंने गोरख की शिक्षा ऑन का अध्ययन ही नहीं किया बल्कि उनके साहित्य पर बहुत कार्य भी किया है स्वर्गीय डॉक्टर रंगेय राघव ने पीएचडी की उपलब्धि गोरखनाथ पर ही ली थी गोपीनाथ कविराज गोरखनाथ के तंत्र मंत्र साहित्य का ज्ञाता थे नेपाल में जो स्थान गोरखनाथ को आज भी प्राप्त है वह किसी अन्य देव को प्राप्त नहीं है नेपाल के राजा के तक पर आज ही गोरखनाथ की चरण पादुकोण का चिन्ह अंकित है नेपाल के नोटों पर और सिक्कों पर श्री श्री गोरखनाथ अंकित है रहता है मत्स्येंद्रनाथ की रथ यात्रा स्वयं महाराजा नेपाल आज भी स्वयं खींचते हैं गोरखनाथ के कारण ही नेपाली अपने आप को गोरखा के ला कर गौरवान्वित होते हैं नेपाली हजारों की संख्या में खिचड़ी के पर्व पर सम्मिलित होकर गोरखनाथ के मंदिर में विशेष पूजा अर्चन करते हैं लोगों विश्वास है कि भगवान गोरखनाथ आज भी गोरखपुर के इस सिद्ध पीठ में सूक्ष्म रूप से विद्वान है लेकिन इस महापर्व खिचड़ी के अवसर पर वह आवश्यक विद्वान रहते हैं नाथ संप्रदाय या जागृत से पीठ माना जाता है

आज गोरखनाथ उसे प्राचीन सिद्ध स्थल पर उसी पुराने मंदिर के ऊपर ही संगमरमर का बहुत बड़ा कलात्मक मंदिर बन गया है जिस स्थान को गोरखनाथ ने अपने बैठने का स्थल चुना था वहां पर आज संगमरमर की गोरखनाथ की मूर्ति विराजमान है जिसकी दिन में तीन बार पूजा होती है मंदिर के आगे विशाल प्रांगण है प्रवेश द्वारा से भीतर घूमते ही भाई और पवित्र लाल है जिसमें भक्तगण स्नान करते हैं लाल के समय भी भीम की 13 मी 71 सेंटीमीटर लंबी प्रतिमा सोए अवस्था में एक सुंदर मंदिर के अंदर बनाई गई है मान्यता के अनुसार यह पर भी सोए थे जो आज भी वहां सोए पड़े हैं इस दिशा में आगे बढ़ने पर सिद्धों के समाधि है बाबा दिग्विजय नाथ के समाधि मंदिरों में उनकी समाधि सबसे आगे है गोरखनाथ पीर के महंत का निवास गोरखनाथ पीठ पर गोरखनाथ की चरणों का नित्य पूजन होता है मुख्य मंदिर के भीतर मुख्य मूर्ति भगवान गौरव नाथ की है मुख्य मूर्ति के दाएं भाग में अखंड ज्योति जलती है जिसे स्वयं गोरखनाथ ने प्रज्वलित किया था मुख्य मंदिर के बाहर पीछे की ओर दाएं और गणेश की कलात्मक संगमरमर की मूर्ति और बाएं तरफ काली के आती सुंदर प्रतिमा है बाएं भाग में मुख्य मंदिर के मुख्य द्वार समीप बाहर की ओर भैरव की आकर्षण मूर्ति तथा मंदिर के अंदर कीर्तन भजन पाठ आदि के लिए विशाल कक्ष है

मंदिर के बाहर बाई और भगवान शंकर रुद्र अवतार हनुमान दूसरों का सुंदर मंदिर है इन मंदिरों के पास गोरखधानी है जो गोरखनाथ ने जलाई थी और अब तक जल रही है पास ही गोरख बाबा को चढ़ावा गए त्रिशूल का मंदिर है जो स्वयं भी भक्तों का आकर्षण केंद्र है ऐसा कहा जाता है कि भक्तगण मनचाही मुरादे पानी पर भगवान गोरखनाथ को त्रिशूल भेंट कर लाखों त्रिशूल इसके प्रमाण है

महेंद्र दिग्विजय नाथ व अवैद्यनाथ की दूरदर्शिता और वर्तमान महंत योगी आदित्यनाथ की शूज पूजने गोरख मंदिर को देश का सर्वोत्तम आध्यात्मिक केंद्र और नाथ संप्रदाय का श्रेष्ठतम स्थल बना दिया है

गोरखपुर नगर में गवर्नर मंदिर की ओर से कह कॉलेज चल रहे हैं संस्कृत महाविद्यालय में छात्रों की प्रथम से आचार्य तथा निशुल्क शिक्षा दी जाती है आयुर्वेदिक महाविद्यालय से लेकर चिकित्सा विश्वविद्यालय भी चलाया जा रहा है छात्र-छात्राओं के लिए निशुल्क को भोजन रहने की व्यवस्था दी जाती है देश के कोने-कोने से आने वाले विज्ञानों को ठहरने खाने के मुफ्त व्यवस्था है पीठासीन महंत योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं उनकी अनेक योजनाएं हैं योगी आदित्यनाथ चाहते हैं कि नाथ संप्रदाय या गोरखनाथ के ऊपर पर्वतीय अंचल मैं शोध कार्य हो गोरखपुर में उनकी एक सुंदर लाइब्रेरी है उसमें दुर्लभ ग्रंथ है महंत योगी आदित्यनाथ सच्चे अर्थों में गोरख गौरव के प्रतीक है उनके हर समय जनकल्याण की चिंता सताती रहती है प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्तगण उनके गौरव चौक से भोजन कर भोग पाते हैं गोरखनाथ के सिद्धांतों का सही अर्थो में हुए प्रचार करने में लगे हैं

गोरखनाथ को शिव का अवतार माना जाता है गोरखनाथ के रूप में शिव संसार को अपने में लीन करने में समर्थ है यही कारण है कि कहीं-कहीं खिचड़ी का पर्व शिव पूजन के साथ ही किया जाता है उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन प्रातः काल ही स्नान कर शिव का पूजन किया जाता है का इस तिथि में विशेष महत्व है माना जाता है की नियुक्त जल से स्नान तिल का हवन तिल का उबटन तिल मिश्रित जल का पान तिल का भाषण और तिल के लड्डू के साथ खिचड़ी का दान इस पर्व में विशेष फलदायक माना जाता है

दान में खिचड़ी ही क्यों दी जाती है यह प्रश्न भी उड़ता है गोरखनाथ जल समाज की चेतन के प्रतीक थे लोक में घुलमिल जाना उनकी विशेषता थी भारत कृषि प्रधान देश है मकर संक्रांति के समय नया चावल और उड़द हर जगह सुलभ होता है और गांव के गरीब से गरीब लोग इन्हें सहज में प्राप्त कर लेते हैं अतः चढ़ावा ऐसा ही भगवान को चढ़ाना चाहिए जिसकी प्रति में कठिनाइयां ना हो भगवान का भोजन भी आमजन का भजन होना चाहिए ताकि खिचड़ी संक्रांति के नाम से यहां पर्व जाना जाता है

सारांश में यह कह सकते हैं की समस्त हिंदू जगत मकर संक्रांति को गंगा स्नान करना अपना परम सौभाग्य समझता है और खिचड़ी का दान कर मंगलमय जीवन सर्वत्र किया जाता है चाहे वह गोरखनाथ की पूजा के रूप में हो या फिर पशुपति नाथ के रूप में हो या फिर केदारनाथ के रूप में है इसे स्पष्ट लगता है कि या शिव का पुण्य फल लायक दिन

मकर संक्रांति के दिन देश के अनेक स्थानों पर मेरे लगते हैं लोग इन मेलों में नाच गा कर खुशी मनाते हैं परंतु जो आकर्षण महत्व और विशेषता गोरखनाथ के प्रांगण गोरखनाथ में मिलती है वहां उनके दर्शन अनियंत्रित नहीं होते हैं कहते हैं खिचड़ी के चढ़ाव के साथ मांगी गई हर मुराद पूरी होती है गोरखनाथ का चमत्कार आज ही देखने और सुनने को

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