वन नेशन-वन इलेक्शन से जुड़े बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। संभावना है कि शीतकालीन सत्र में ही इसे संसद में पेश कर दिया जाएगा। वन नेशन-वन इलेक्शन पर चर्चा 2014 के बाद से ही शुरू हो गई है। बीते एक दशक में कई पड़ावों से गुजरते हुए वन नेशन-वन इलेक्शन का सफर यहां तक पहुंचा है। हालांकि अभी ये सफर और लंबा है।
- वन नेशन-वन इलेक्शन पर विपक्ष सहमत नहीं
- सरकार को संविधान संशोधन की पड़ेगी जरूरत
- बिल को जेपीसी के पास भेजे जाने की उम्मीद
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संविधान लागू होने के बाद साल 1951-52 में देश में पहली बार चुनाव कराए गए थे। शायद नीति निर्माताओं को भविष्य की जरूरत पता थी, इसलिए लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ कराए गए थे।
लेकिन 1967 के बाद से परंपरा बिगड़ गई। कहीं राज्य की विधानसभा को भंग करना पड़ा, तो कभी लोकसभा चुनाव ही पहले करा लिए गए। आलम ये हो गया कि अब देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होता ही है।
2029 में एक साथ होंगे चुनाव
लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार एक बार फिर इस परंपरा को शुरू करने जा रही है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो 2029 में पहली बार देश में एक साथ चुनाव होंगे। लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनावों के लिए देश एक साथ वोट डालने निकलेगा।
लेकिन ये सुनने में जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। केंद्र सरकार को इसके लिए संविधान में जरूरी संशोधन करने पड़ेंगे और इसके लिए उसे दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। इसके बाद अगर राज्यों की सहमति की जरूरत पड़ी, तो विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्य अड़चन पैदा करेंगे।अब जब चर्चा यहां तक पहुंच गई है कि वन नेशन-वन इलेक्शन को शीतकालीन सत्र में ही पेश किया जा सकता है, तो इससे जुड़े कुछ अहम बातें जान लेनी जरूरी हैं।