हिन्दी के कालिदास’ ने दिया हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना
प्यारे समुद्र मैदान जिन्हें नित रहे उन्हें वही प्यारे
मुझको तो हिम से भरे हुए अपने पहाड़ ही प्यारे
ये पंक्तियां है हिंदी के कालिदास के रूप में जाने जाने वाले प्रकृति के चितेरे कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की। आज उनकी पुण्यतिथि है। उन्होंने हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दिया था।
मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना,
पर उतना जी लूं जितना जीना सुंदर हो!
मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना,
पर उतना पी लूं जिससे मधुमय अंतर हो!!
हिन्दी साहित्य को दिया अनमोल खजाना
चन्द्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म चमोली गढ़वाल के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर (वर्तमान में रुद्रप्रयाग) में 20 अगस्त 1919 को हुआ था। उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हज़ार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया था। मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं।
बर्त्वाल के पिता भूपाल सिंह बर्त्वाल उडामांडा के निकट स्थित मिडिल स्कूल नागनाथ में प्रधानाध्यापक थे। चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की प्रारम्भिक शिक्षा बेसिक स्कूल उडामांडा में ही हुई। मिडिल की परीक्षा उन्होंने नागनाथ से उत्तीर्ण की। हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के लिये वे म्युसमौर हाईस्कूल, पौड़ी में प्रविष्ट हुए। इंटरमीडिएट की परीक्षा उन्होंने डी.ए.वी. कालेज, देहरादून से उत्तीर्ण की। 1939 में चन्द्रकुँवर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए. करने के लिए वह लखनऊ चले गए लेकिन लखनऊ प्रवास से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और वह घर वापस लौट आए। घर के निकट ही अगस्त्यमुनि हाईस्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य करने लगे।
प्रकृति का चितेरा
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना जाता है। उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदियों, फूलों, खेतों, बसन्त का वर्णन तो है ही उपनिवेशवाद का विरोध भी दिखता है। आज उनके काव्य पर कई छात्र पीएचडी से लेकर डीलिट् कर रहे हैं। बता दें कि कालिदास को अपना गुरु मानने वाले चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने पोखरी और अगस्तमुनि में अध्यापन भी किया था।
काफल पाक्कू जैसी कई प्रमुख कृतियां लिखी
कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की प्रमुख कृतियों में विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी, काफल पाक्कू, जीतू, मेघ नंदिनी हैं। युवावस्था में ही वह तपेदिक यानी टीबी के शिकार बन गए थे और इसके चलते उन्हें पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा था। मृत्यु के सामने खड़े कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताओं को लिखा।
मृत्यु के बाद मिली पहचान
14 सितम्बर, 1947 को हिन्दी साहित्य को बेहद समृद्ध खजाना देकर यह युवा कवि दुनिया को अलविदा कह गया। बता दें कि कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की मृत्यु के बाद उनके सहपाठी शंभुप्रसाद बहुगुणा ने उनकी रचनाओं को प्रकाशित करवाया और यह दुनिया के सामने आईं।