छात्र आंदोलन के दबाव से बच निकलने के लिए विश्वविद्यालय के परिसरों को अनिश्चितकाल के लिए बंद

राज्य

श्रीनगर ( गढ़वाल): हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय उत्तराखंड ने एक अनोखा आदेश निकाला है. 31 जुलाई 2024 को विश्वविद्यालय के कुलसचिव के हस्ताक्षर से निकले आदेश में विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के कार्यालयों को अग्रिम आदेशों तक बंद करने का फरमान जारी किया गया है.

छात्र आंदोलन के दबाव से बच निकलने के लिए विश्वविद्यालय के परिसरों को अनिश्चितकाल (sine die) के लिए बंद करने की बात तो देखी-सुनी थी पर प्रशासनिक भवन बंद करने का यह पहला ही मामला देखने-सुनने में आ रहा है. कुलसचिव की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि “विगत कुछ दिवसों से विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन में कतिपय समूहों द्वारा उत्पन्न अराजक परिस्थितियों, भय एवं अशांति के वातावरण तथा इसके फलस्वरूप प्रशासनिक भवन के कार्यालयों , कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों एवं अन्य आगंतुकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक भवन के कार्यालयों को तात्कालिक प्रभाव से अग्रिम आदेशों तक बंद रखे जाने का निर्णय लिया गया है.”

आदेश को पढ़ कर ऐसा लगता है,जैसे कि विश्वविद्यालय पर कोई हमला हो गया हो और हमले के मद्देनजर सभी अधिकारियों / कर्मचारियों का सुरक्षित बंकरों में जाना ही एकमात्र विकल्प रह गया हो !
अगर गढ़वाल विश्वविद्यालय का प्रशासनिक भवन इतना अराजक और असुरक्षित स्थान बन गया है तो इसकी सबसे पहली जिम्मेदारी तो कुलपति समेत विश्वविद्यालय के उच्च पदस्थ अधिकारियों पर है कि उनका कोई प्रशासनिक नियंत्रण है ही नहीं ! ऐसे में तो सबसे पहले कुलपति समेत उच्च पदों पर बैठे लोग हटाए जाएं और ऐसे लोग पदों पर बैठाए जाएं जो प्रशासनिक भवन में अमन और भाईचारा कायम करवा सकें.

प्रसंगवश गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोक संस्कृति एवं कला निष्पादन केंद्र के विभिन्न आरक्षित पदों को सामान्य पदों में बदले जाने का सवाल छात्र नेताओं द्वारा उठाया जा रहा है, जिसका कोई संतोषजनक सार्वजनिक जवाब तो कम से कम दिखाई नहीं दे रहा है. पी.वी.सी.की नियुक्ति का मामला उच्च न्यायालय, नैनीताल पहुंच चुका है. इससे पहले अंग्रेजी विभाग के मामले में विश्वविद्यालय पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अर्थदंड लगाया. फार्मेसी विभाग के मामले में उच्चतम न्यायालय ने भरी अदालत में कुलपति- कुलसचिव को फटकार लगाई और जेल भेजने की चेतावनी तक दे डाली.

अगर विश्वविद्यालय के निर्णयों पर उठते सवाल ,वो खतरनाक परिस्थितियां हैं, जिनका सामना करने से बचने के लिए विश्वविद्यालय का प्रशासनिक भवन अनिश्चित काल के लिए बंद किया जा रहा तो फिर तो उच्च पदस्थों का पदों से हटना ही शांति कायम करने का सबसे प्रभावी उपाय है. ऐसे सवाल विश्वविद्यालय में हमेशा उठते रहे हैं पर प्रशासनिक भवन में ताला पहली बार वर्तमान “सक्षम अधिकारी के अनुमोदन” पर ही लग रहा है, जो “सक्षम अधिकारी” की अक्षमता ही प्रदर्शित कर रहा है.
यह भी उल्लेखनीय है कि जिन कुलसचिव के आदेश से प्रशासनिक भवन पर ताला लगाया गया है, वह कुलसचिव का पद भी आया राम- गया राम बना हुआ है. नेताओं के पार्टी बदलने की रफ्तार से गढ़वाल विश्वविद्यालय में कुलसचिव बदले जा रहे हैं. जिन “सक्षम अधिकारी” की कुलसचिव की कुर्सी पर बैठने वालों से ही नहीं निभ पा रही है, उनकी सक्षमता तो स्वतः ही सवालों के घेरे में है !

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