हरिश रावत के ज़ख्म फिर से हरे हो गए हैं। नगर निकाय चुनाव के दौरान कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे को लेकर हुए विवाद ने उन्हें साल 2016 की बगावत और स्टिंग ऑपरेशन की याद दिला दी है। उन्होंने पार्टी में वापसी करने वाले नेताओं पर निशाना साधा है। जानिए हरिश रावत के इस दर्द के पीछे की कहानी और उत्तराखंड की राजनीति में चल रही खींचतान के बारे में।
देहरादून। नगर निकाय चुनाव के अवसर पर भी ठीक वही हुआ, जैसा वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद अब तक हुए चुनाव में होता आया है। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने एक बार फिर वर्ष 2016 में कांग्रेस में हुई बगावत को लेकर कांग्रेस के भीतर और बाहर कई नेताओं को निशाने पर लिया।
निकाय चुनाव के लिए टिकटों को अंतिम रूप देने के दौरान वरिष्ठ नेता आपस में उलझे हुए थे तो पूर्व मुख्यमंत्री ने उनकी सरकार में बागी हुए नेताओं को निशाने पर लिया ही, साथ में स्टिंग आपरेशन के शिकंजे में फंसने का दर्द भी बयां कर दिया। निकाय चुनाव के अवसर पर उनके इस दर्द के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को वर्ष 2016 में उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में हुई बगावत का गम बार-बार सालता है। बगावत के बाद जो नेता कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं, हरीश रावत अब तक उन्हें न तो माफ कर पाए और न ही उन्हें लेकर रहमदिली दिखाने को तैयार हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना का कांग्रेस की राजनीति और प्रदेश पर जो प्रभाव पड़ा, यह एक ऐसा अध्याय है, जिस पर उन्हें कुछ न कुछ कहना चाहिए। वर्ष 2016 में हुए स्टिंग के प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सीबीआइ जांच का सामना कर रहे हैं। अपनी पोस्ट में उन्होंने स्टिंग आपरेशन के चंगुल में उनके फंसने के पीछे के कुछ कारण भी गिनाए।बताया जा रहा है कि निकायों में टिकटों के निर्धारण को लेकर बैठकों के दौरान कई बार ऐसे अवसर आए जब वरिष्ठ नेताओं में मतभेद रहे। कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में सम्मिलित हरीश रावत इसे लेकर खासे व्यथित हुए।इसके बाद ही इंटरनेट मीडिया पर उनकी यह पोस्ट नजर आई। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस के भीतर गुटीय खींचतान पर रोक शायद ही लग पाए। खींचतान ने अब स्थायी रूप ले लिया है और पार्टी का आम कार्यकर्ता भी इसे नियति के रूप में स्वीकार कर चुका है।