पहले वेतन आयोग का गठन 1946 में हुआ था। इसका मकसद आजादी के वेतन ढांचे को बेहतर बनाना था। इसमें कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन 55 रुपये महीना तय किया गया था ताकि वे सम्मान के साथ जीवन जी सकें। आठवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद न्यूनतम वेतन 51480 रुपये तक हो सकता है। आइए जानते हैं कि पहले से लेकर सातवें वेतन आयोग तक सैलरी कैसे बढ़ी।
- पहले वेतन आयोग का कार्यकाल मई 1946 से मई 1947 तक था।
- चौथे वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन पहली बार चार अंकों में पहुंचा।
- सातवें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये तय किया गया।

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 8वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। फिटमेंट फैक्टर के आधार पर अनुमान है कि इससे केंद्रीय कर्मचारियों की न्यूनतम बेसिक सैलरी में 186 फीसदी का भारी उछाल आएगा। यह अभी 18,000 रुपये है, जो 8वां वेतन आयोग लागू होने के बाद बढ़कर 51,480 रुपये हो सकती है। आइए जानते हैं कि पहले वेतन से लेकर सातवें वेतन का गठन कब कैसे हुआ और इस दौरान सरकारी कर्मचारियों की सैलरी कितनी बढ़ी।
पहला वेतन आयोग
पहले वेतन आयोग का कार्यकाल मई 1946 से मई 1947 तक था। इसके अध्यक्ष श्रीनिवास वरदाचार्य थे। वेतन आयोग के गठन का मकसद आजादी के वेतन ढांचे को बेहतर बनाना था। इसमें ‘जीवन यापन के लिए वेतन’ का सिद्धांत पेश किया गया। केंद्रीय कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन 55 रुपये महीना और अधिकतम 2000 रुपये महीना की सीमा तय की गई। इसका लाभ 15 लाख कर्मचारियों को मिला था।
दूसरा वेतन आयोग
पहले वेतन आयोग के 10 साल बाद अगस्त 1957 में दूसरे वेतन आयोग का गठन हुआ। इसका कार्यकाल दो साल का था। इसकी अगुआई जगन्नाथ दास ने की थी। इस वेतन आयोग ने समाजवादी पैटर्न की अवधारणा पेश की, जिसमें समानता को बुनियादी सिद्धांत माना जाता है। इसका जोर गुजर-बसर करने की लागत और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन साधने पर था। इसका लाभ 80 लाख कर्मचारियों को मिला। इसमें न्यूनतम वेतन 80 रुपये प्रति माह करने की सिफारिश की गई थी।
तीसरा वेतन आयोग
तीसरा वेतन अप्रैल 1970 से मार्च 1971 तक था। इसके अध्यक्ष रघुबीर दयाल थे। इसमें न्यूनतम वेतन 185 रुपये प्रति माह करने की सिफारिश की गई। इस वेतन आयोग ने निजी-सरकारी क्षेत्र के वेतन में समानता पर जोर दिया। साथ ही, वेतन ढांचे में मौजूदा खामियों को दुरुस्त करने की कोशिश भी की। इस वेतन आयोग लाभ 30 लाख कर्मचारियों को मिला।
चौथा वेतन आयोग
चौथा वेतन सितंबर 1983 में गठित हुआ और इसका कार्यकाल दिसंबर 1986 में खत्म हुआ। इसमें वेतन सुधार की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाया गया। वेतन आयोग ने सभी रैंक के बीच वेतन असमान दूर करने पर जोर दिया है। इसमें न्यूनतम वेतन 750 रुपये प्रति महीना करने की सिफारिश की गई थी।
पांचवां वेतन आयोग
पांचवां वेतन आयोग जस्टिस एस रत्नावेत पंडियन की अगुआई में गठित किया गया। इसका कार्यकाल अप्रैल 1994 से जनवरी 1997 तक था। इसमें न्यूनतम वेतन पहली बार चार अंकों में पहुंचा। इसे 2,550 रुपये प्रति माह करने की सिफारिश की गई। इसमें पे स्केल घटाने की सिफारिश की गई और सरकारी कार्यालयों के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया। इसका लाभ 40 लाख से अधिक कर्मचारियों को मिला।
छठा वेतन आयोग
छठा वेतन आयोग का कार्यकाल अक्टूबर 2006 से मार्च 2008 तक था। इसके अध्यक्ष जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा थे। इसमें पे बैंड और ग्रेड पे की अवधारणा पेश की गई। न्यूनतम वेतन 7,000 रुपये प्रति माह तय किया गया और अधिकतम वेतन की सीमा 80,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाया गया। इसमें परफॉर्मेंस के प्रदर्शन आधारित पुरस्कार दिए जाने का कॉन्सेप्ट पेश किया। इसका लाभ 60 लाख कर्मचारियों को मिला।
सातवां वेतन आयोग
सातवें वेतन आयोग का गठन फरवरी 2014 में किया गया, जिसका कार्यकाल नवंबर 2016 तक था। इसके अध्यक्ष जस्टिस एके माथुर थे। इसमें न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह तय किया गया। आयोग ने ग्रेड पे सिस्टम की जगह एक पे मेट्रिक्स का कॉन्सेप्ट पेश किया। इसमें भत्तों के साथ काम और घर के बीच संतुलन पर ध्यान केंद्रित किया गया। इससे 1 करोड़ कर्मचारियों को लाभ मिला।
सरकार ने 8वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। यह केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन और अन्य लाभों की समीक्षा करेगा और उसी के हिसाब वेतन में बढ़ोतरी की सिफारिश करेगा।