Uniform Civil Code उत्तराखंड में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को हाई कोर्ट में कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यूसीसी मुस्लिम समुदाय के प्रचलित रीति-रिवाजों और मुस्लिम पर्सनल लॉ का उल्लंघन करता है। हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

नैनीताल। Uniform Civil Code: उत्तराखंड में 27 जनवरी 2025 से लागू यूसीसी को अन्य याचिकाओं के जरिये हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। जिसमें मुस्लिम संगठन भी शामिल हैं। वहीं इन याचिकाओं को दो दिन पूर्व दायर हुई याचिकाओं के साथ सम्बद्ध करते हुए सभी याचिकाओं को एक साथ छह हफ्ते बाद सुनवाई का फैसला लिया है।
इन याचिकाओं पर सुनवाई पहली मार्च को होगी। इन याचिकाओं में भी यूसीसी को मुस्लिम समुदाय के प्रचलित रीति रिवाजों व मुस्लिम पर्सनल लॉ के विरुद्ध बताया गया है।
यूसीसी के कई प्रविधानों को दी चुनौती
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में उत्तराखंड जमाते ए उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष मो.मुकीम निवासी हल्द्वानी, सचिव तंजीम (हरिद्वार), सदस्य शोएब अहमद (मल्लीताल नैनीताल), मो.शाह नजर (देहरादून),अब्दुल सत्तार (देहरादून) ने यूसीसी के कई प्रविधानों को चुनौती दी है। देहरादून के नईम अहमद, बिजनौर के हिजाब अहमद, देहरादून के जावेद अख्तर व आकिब कुरैशी ने भी याचिका दायर की है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.नरेंद्र की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल वीडियो कांफ्रेंसिंग से पेश हुए थे, लेकिन कोर्ट ने इन याचिकाओं की सुनवाई की तिथि पहली अप्रैल नियत कर दी ।
यूसीसी के प्रविधानों को अधिवक्ता आरुषि गुप्ता ने जनहित याचिका के जरिये चुनौती दी है, भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने भी यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधानों को जनहित याचिका के जरिये चुनौती दी थी , जबकि देहरादून के एलमसुद्दीन व अन्य ने रिट याचिका दायर कर यूसीसी को चुनौती दी है। इन याचिकाओं में हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है।
उत्तराखंड में यूसीसी के मामले में केंद्र व राज्य सरकार से मांगा जवाब
वहीं नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड में पिछले माह से प्रभावी नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रावधानों की चुनौती देती जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
विगत बुधवार मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में सुनवाई हुई। जिसमें मुस्लिम समुदाय से संबंधित विवाह, तलाक, इद्दत और विरासत के संबंध में समान नागरिक संहिता, 2024 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी है कि कुरान और उसकी आयतों में निर्धारित कानून हर मुसलमान के लिए एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। यूसीसी उपरोक्त धार्मिक मामलों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो कुरान की आयतों के बिल्कुल विपरीत है।मुसलमान बने रहने के लिए व्यक्ति को कुरान और उसकी आयतों का पालन करना होगा। यूसीसी भारत के संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 25 धर्म के पालन और पेशे की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
यूसीसी की धारा-390 मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के विवाह, तलाक, विरासत के संबंध में रीति-रिवाजों और प्रथाओं को निरस्त करती है। कुरान की आयतों के विपरीत सिविल कानून मान्य नहीं कुरान की आयतों का पालन करना एक मुसलमान के लिए अनिवार्य अभ्यास है और सिविल कानून बनाकर राज्य किसी मुस्लिम व्यक्ति को ऐसा कुछ भी करने का निर्देश नहीं दे सकता जो कुरान की आयतों के विपरीत हो।