
बात चाहे धार्मिक स्थलों की हो या फिर त्योहारों की, वर्तमान दौर की राजनीति में सभी को सांप्रदायिक रंग देने में नेताओं द्वारा किसी भी तरह का कोई संकोच नहीं किया जाता है। अभी होली के त्योहार पर नेताओं द्वारा भड़काऊ बयान देने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी गई। भला हो इस देश की अवाम का कि उसने इन नेताओं के बयानों को कोई खास तवज्जो नहीं दी गई और भाईचारे की मिसाल को कायम रखा तथा रंगों के इस पर्व को रक्त रंजित होने से बचा लिया गया। होली का त्योहार शांति और सद्भाव से मनाए जाने के बाद उम्मीद की जा सकती है कि ईद का त्यौहार भी अमन और शांति के साथ ही मनाया जा सकेगा। उत्तराखंड की राजनीति की अगर बात करें तो राज्य गठन के दो दशक तक सूबे की राजनीति इस सांप्रदायिकता से अछूती रही लेकिन बीते कुछ सालों में देवभूमि में भी मंदिर—मस्जिद और हिंदू मुस्लिम का मुद्दा अपने रंग में आना शुरू हो गया है। राज्यों के डेमोग्राफिक चेंज को आधार बनाकर धार्मिक संरचनाओं की आड़ में जमीन कब्जाने पर बुलडोजर की कार्यवाही भले ही सही मानी जाए लेकिन इसके साथ—साथ लव जेहाद और बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक तथा अन्य तमाम मुद्दों का शोर राज्य भर में सुनाई देने लगा है। केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल का यह बयान इसका ताजा उदाहरण है जिसमें उन्होंने गैर समुदाय के लोगों पर केदारनाथ में प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात कही है। उनका कहना है कि गैर हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा चार धाम यात्रा के दौरान मांस और शराब बेचे जाने से या पहुंचाये जाने से हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंचती है तथा धाम की पवित्रता को नुकसान पहुंचने से केदारधाम की छवि को खराब करने की कोशिश की जा रही है। अगर आशा नौटियाल के आरोप सही भी है तो यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह मांस व शराब की अवैध रूप से सप्लाई करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही सुनिश्चित करें। ऐसा अगर हो भी रहा है तो कुछ लोग ही ऐसे होंगे जो इस तरह का काम कर रहे होंगे। बाकी लोग जो यहां रोजगार के लिए मेहनत मजदूरी करने आते हैं उन पर क्यों प्रतिबंध लगाया जाए यह विचारणीय सवाल है। चारधाम यात्रा ने घोड़े—खच्चर वालों से लेकर छोटे काम करके चार पैसे कमाने वाले बहुत लोग हैं। चारधाम यात्रा के दौरान आने वाले पर्यटकों में बहुत सारे लोग शराब सेवन करते पकड़े जाते हैं, लोग अपनी गाड़ियों में शराब व खाने—पीने का सामान लेकर खुद जाते हैं क्या ऐसे लोगों से चारधाम यात्रा की छवि खराब नहीं होती है। सही मायने में तो ऐसे लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है एक अन्य सवाल यह है कि राज्य के लोग जो खुद रोज शराब सेवन और मांस खाने खिलाने का काम इन चारधाम यात्रा मार्गों पर करते हैं क्या उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए विधायक आशा नौटियाल के पास कोई कार्ययोजना है। गैर हिंदुओं द्वारा अगर मांस और शराब की सप्लाई की जाती है तो यह किसे की जाती है। जिन्हें सप्लाई की जाती है क्या वह स्थानीय लोग नहीं है अगर राज्य के व्यवसायी ही इस शराब व मांस को खरीद रहे हैं तो दोषी तो वह भी कम नहीं है। बाहर से शराब व मांस लाकर कोई भी चारधाम यात्रियों को सीधे बेच सके यह कोई आसान काम तो नहीं है अगर ऐसा हो भी रहा है तो वह स्थानीय पुलिस प्रशासन की मिली भगत से ही हो रहा होगा। इस तरह के बयान का मतलब किसी बुराई या गलत काम को रोकना नहीं अपितु उसका राजनीतिक हिस्सा अधिक है जो सांप्रदायिकता को हवा देती है।
साम्प्रदायिक राजनीति
ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ माना जाता है, कोई एक धार्मिक समूह अपने मांगों को दूसरे धार्मिक समूह के विरोध में लाने लगता है। इस प्रक्रिया में राज्य अपने शक्तियों का उपयोग किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है।