सरकारी स्कूलों में सुधार हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति एवं ठोस कार्यवाही की आवश्यकता

News Desk
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लोकजन एक्सप्रेस देहरादून

सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा दोनो बदलने की जरूरत है

सरकारी स्कूलों में सुधार हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति एवं ठोस कार्यवाही की आवश्यकता। डॉ सुनील अग्रवाल। निजी कॉलेज एसोसिएशन उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत जी द्वारा सरकारी स्कूलों में घटती छात्र संख्या की जांच हेतु कमेटी गठित करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक करने हेतु किसी जांच कमेटी के बजाय दृढ़ इच्छा शक्ति एवं ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है डॉ अग्रवाल ने कहा कि सरकारी स्कूलों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति मेरिट के आधार पर की जाती है और उन्हें उच्च वेतन मान दिया जाता है छात्रों हेतु ड्रेस और मिड डे मील की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है इसके बावजूद भी सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार कम हो रही है और रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2800 सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 10 या इससे से कम है 180 विद्यालय ऐसे हैं जहां 242 शिक्षक मात्र एक-एक छात्र को पढ़ा रहे हैं मेरिट से आए हुए योग्य शिक्षकों के बावजूद लोगों का सरकारी स्कूलों से मोह भंग होना स्कूलों में जरूरी सुविधाओं का अभाव है सरकार स्वयं मानती है की सरकारी स्कूल कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए भी उपयुक्त नहीं है इसका सबसे बड़ा उदाहरण निजी स्कूलों में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 25% सीटे कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षित करना और उनके लिए सरकार द्वारा निजी स्कूलों को उन बच्चों की फीस दिया जाना इसके विपरीत अगर सरकार अपने सरकारी स्कूलों की व्यवस्था सुधारकर उनमें सही इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवाये शिक्षकों को अन्य कार्यों में न लगाकर छात्रों की शिक्षा और सरकारी स्कूलों में छात्रों के प्रवेश हेतु समाज को प्रोत्साहित करने के लिए ही प्रयोग करना चाहिए जिससे सरकारी स्कूलों में छात्रों के प्रवेश हेतु लोगों को आकर्षित किया जा सके सरकारी स्कूल जनता के टैक्स के पैसे से बने हैं और उनमें कार्यरत शिक्षकों को जनता के टैक्स के पैसे से ही सैलरी मिलती है जिसका सदुपयोग किया जाना आवश्यक है जब-जब प्रवेश के मौके आते हैं तो प्राइवेट स्कूलों में मनमानी के आरोप लगते हैं अगर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक कर दी जाए और लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश हेतु प्रोत्साहित किया जाए और इसकी शुरुआत सरकारी अधिकारियों और सरकारी कर्मियों से की जाए प्राइवेट स्कूलों की मनमानी तो अपने आप कम हो जाएगी जब जब प्रवेश का समय आता है तो प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश के लिए अधिकारी हो नेता हो इनके द्वार पर लोगों की भीड़ किसी न किसी प्राइवेट स्कूल में प्रवेश दिलवाने हेतु लगी रहती है स्टेटस सिंबल हेतु कुछ लोग तो कुछ चुनिंदा स्कूलों में किसी भी तरह प्रवेश करने हेतु लालायित रहते हैं उसके लिए नेताओं और अधिकारियों के आगे नतमस्तक रहते हैं प्रवेश के समय स्कूलों की सब शर्तों को मानने को तैयार रहते हैं और जब प्रवेश मिल जाता है तो उसके बाद मनमानी के आरोप लगाते हैं या दोहरा रवैया भी शिक्षा के लिए ठीक नहीं है जब अपने टैक्स के पैसे से स्थापित स्कूलों की व्यवस्था की तरफ ही लोगों का ध्यान नहीं है तो कैसे कहा जाए कि हम एक जागरूक समाज के अंग हैं जितनी जागरूकता प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के मामले में लगाते हैं उतनी जागरूकता और इतने आंदोलन अगर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक करने के लिए किए जाएं तो व्यवस्था में सुधार होगा लेकिन सबका ध्यान तो आसान टारगेट की तरफ होता है और हमारे देश में अपने संसाधनों से कार्य करने वाला निजी क्षेत्र तो नेताओं अधिकारियों जनता सबके लिए आसान टारगेट होता है

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