30 साल बाद बीएसएफ जवान को मिला बलिदानी का दर्जा, कमांडेंट आफिसर ने शहीद की पत्नी को सौंपा प्रमाणपत्र

News Desk
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तीस साल बाद 1994 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर शहीद हुए बीएसएफ जवान को बलिदानी का दर्जा मिला। महानिदेशालय के प्रयासों से भारत सरकार ने यह सम्मान दिया। कमांडेंट आफिसर ने शहीद की पत्नी को प्रमाणपत्र सौंपा। ताड़ीखेत के रिकोशा गांव के इस जवान ने तस्करों से लड़ते हुए बलिदान दिया था। इस सम्मान से परिवार और गांव वाले गौरवान्वित हैं।

  1. 30 साल बाद बीएसएफ जवान को सम्मान
  2. बांग्लादेश सीमा पर बलिदान दिया था
  3. परिवार को बलिदानी प्रमाणपत्र मिला

 रानीखेत। भारत बांग्लादेश की अग्रिम चौकी पर मुठभेड़ में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले बीएसएफ जवान को 30 वर्षों के बाद बलिदानी सपूत का दर्जा नसीब हो सका है। महानिदेशालय सीमा सुरक्षा बल के अथक प्रयासों के बाद भारत सरकार की ओर से इस जांबाज के बलिदान को मान्यता दी गई है।

कमांडेंट आफिसर (बरेली हेडक्वार्टर) दिनेश सिंह ने बलिदानी के घर पर पहुंच उसकी वीरांगना को ‘आपरेशनल कैज्यूल्टी प्रमाणपत्र’ भेंट कर कृतज्ञता व्यक्त की। वहीं भारतीय सेना की भांति वीरगति प्राप्त करने वाले सपूतों को बलिदानी घोषित किए जाने से स्वजन व गांव वालों ने खुद को गौरवांवित महसूस किया तो बलिदान के तीन दशक बाद सम्मान मिलने से आंखें भी नम हो आईं।

उत्तराखंड में पैरामिलिट्री फोर्स का यह इकलौता सपूत है जिसे यह गौरव मिल सका है। बात 23 अगस्त 1994 की है। रानीखेत की कंडारखुआं पट्टी (ताड़ीखेत ब्लाक) के रिकोशा गांव निवासी लांस नायक (सामान्य ड्यूटी) बीएसएफ की 57वीं बटालियन सीसुब की सीमा चौकी जलांगी, रोशनबाग (दक्षिण बंगाल) में तैनात थे।

अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बांग्लादेशी लुटेरों व तस्करों की घुसपैठ की सूचना पर इस जांबाज को दो अन्य जवानों के साथ नाका ड्यूटी के लिए मोर्चे पर भेजा गया था। विशेष आपरेशन के दौरान मुठभेड़ के बाद समुद्री मार्ग से भाग रहे देशविरोधी तस्करों का जांबाज प्रेम सिंह ने नौका से पीछा किया।

घात लगाकर तस्करों ने हमला किया मगर डट कर लोहा लेते हुए लांस नायक प्रेम सिंह ने सीमा की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। मुठभेड़ और जांबाज के बलिदान की सूचना पर सीमा सुरक्षा बल ने सर्च आपरेशन चलाया।

24 अक्टूर को दूसरे दिन भारत भूमि के इस सपूत का पार्थिव शरीर पद्मा नदी से बरामद कर लिया गया। बल के बहादुर सिपाही के सर्वोच्च बलिदान देने के बाद महानिदेशलय बीएसएफ ने सम्मान दिलाने के लिए लंबा संघर्ष किया। स्वजन भी इस जांबाज को बलिदानी सपूत का दर्जा दिलाने की आस में लगा रहा। लगभग तीस बरस बाद अब जाकर डीजी बीएसएफ के प्रयास व भारत सरकार की पहल पर पहाड़ के इस लाल को बलिदानी का दर्जा मिल सका है।कमांडेंट आफिसर दिनेश सिंह बल की टीम के साथ डीजी बीएसएफ (नई दिल्ली) की ओर से बलिदानी प्रेम सिंह रावत के पीडी कालोनी, बिठोरिया नंबर-एक ऊंचापुल पोस्ट हरिपुर नायक हल्द्वानी (नैनीताल) स्थित घर पर पहुंचे। उनकी वीरांगना गुड्डी देवी रावत, पुत्र सूर्यप्रताप सिंह रावत (संजय) तथा सम्मान के लिए संघर्ष में शामिल भाई धन सिंह रावत को संयुक्त रूप से आपरेशनल कैज्यूल्टी प्रमाणपत्र दिया। बल की ओर से कृतज्ञता जताई और स्वजन को बीएसएसफ का परिवार बताते हुए हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया।

पहले इन्हें भी मिल चुका दर्जा

  • इससे पूर्व 1990 में बारामूला सेक्टर में आतंकी मुठभेड़ में प्राण न्यौछावर करने वाले झुंझनूं (राजस्थान) निवासी बीएसएफ में हवलदार दूलीचंद को 26 वर्ष बाद 2016 में बलिदानी का दर्जा मिला था।
  • 1992 में जम्मू कश्मीर में आतंकी हमले में देश के काम आए भरतपुर के नयावास गांव निवासी बीएसएफ जवान ब्रिजेंद्र सिंह व भरतपुर शहर निवासी वीरेंद्र सिंह समेत चार जांबाजों को 2022 में तथा 1993 में भारत बांग्लादेश सीमा पर इच्छामती नदी क्षेत्र में पेट्रोलिंग के दौरान जान गंवाने वाले बीकानेर (राजस्थान) निवासी बीएसएफ जवान जेठाराम बिश्नोई को भी बीते वर्ष बलिदानी का सम्मान मिल चुका है।
  • जांबाज प्रेम सिंह उत्तराखंड का पहला मामला है।

‘बलिदान बलिदान होता है, भले वह भारतीय सेना का जवान दे या पैरा मिलिट्री फोर्स का बहादुर। हमारे बल के जांबाज लांस नायक प्रेम सिंह ने आपरेशन के दौरान देश की संप्रभुता के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। पहले परिस्थितियां भिन्न थीं। अब काफी बदलाव आया है। बलिदानियों के पार्थिव शरीर घर तक पहुंचाए जाते हैं। दरअसल, उस दौर में जो वीरगति को प्राप्त हुए थे, भारत सरकार व महानिदेशालय ने देने वालों के स्वजन को आपरेशनल कैज्यूल्टी प्रमाणपत्र देकर सम्मान दिया जा रहा। ताकि वह दुख की घड़ी में गौरव की अनुभूति कर गर्व से कह सकें कि उनका सपूत देश के काम आया। – दिनेश सिंह, कमांडेंट आफिसर सीमा सुरक्षा बल बरेली हेड क्वार्टर’

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