लोकजन एक्सप्रेस गैरसैंण/ उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र जिसे राज्य की जनता और राजनीतिक हलकों में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था महज हंगामे और शोरगुल की भेंट चढ़ गया। 19 अगस्त से 22 अगस्त तक प्रस्तावित यह सत्र जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के बजाय राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों में ही उलझ कर रह गया। परिणाम यह हुआ कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद विधानसभा सत्र से राज्य को कोई ठोस नतीजा नहीं मिल पाया।
सत्र की शुरुआत से ही विपक्ष कांग्रेस ने राज्य की बदहाल कानून-व्यवस्था पर नियम 310 के तहत चर्चा की मांग को लेकर जोरदार हंगामा किया। कांग्रेस विधायकों ने सदन के भीतर जोरदार नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन किया। विपक्ष का कहना था कि हाल के दिनों में राज्य में अपराध और आपराधिक घटनाओं में तेजी आई है लेकिन सरकार इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा से बच रही है। विधानसभा अध्यक्ष ने विपक्ष की मांग सुनी जरूर लेदूसरी ओर सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं के तहत 5000 करोड़ रुपये से अधिक का अनुपूरक बजट सदन में पेश कर दिया। यही नहीं 9 विधेयक भी शोरगुल और अव्यवस्था के बीच पारित कर लिए गए। इससे यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब विपक्ष और सत्ता पक्ष एक-दूसरे पर हावी होने में व्यस्त थे तो ऐसे में जनता से जुड़े मुद्दों पर ठोस विमर्श कैसे हो सकता था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस विधानसभा सत्र को चार दिन तक चलना था वह 20 अगस्त को ही भोजनावकाश से पहले सीमित कर दिया गया। यानी चार दिन के सत्र का सार महज दो दिनों में ही समाप्त हो गया। विपक्ष के प्रदर्शन और सत्ता पक्ष के तेवरों के बीच सदन में कोई ठोस बहस नहीं हो पाई।किन हंगामे के बीच कार्यवाही चलती रही।
दूसरी ओर सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं के तहत 5000 करोड़ रुपये से अधिक का अनुपूरक बजट सदन में पेश कर दिया। यही नहीं 9 विधेयक भी शोरगुल और अव्यवस्था के बीच पारित कर लिए गए। इससे यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब विपक्ष और सत्ता पक्ष एक-दूसरे पर हावी होने में व्यस्त थे तो ऐसे में जनता से जुड़े मुद्दों पर ठोस विमर्श कैसे हो सकता था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस विधानसभा सत्र को चार दिन तक चलना था वह 20 अगस्त को ही भोजनावकाश से पहले सीमित कर दिया गया। यानी चार दिन के सत्र का सार महज दो दिनों में ही समाप्त हो गया। विपक्ष के प्रदर्शन और सत्ता पक्ष के तेवरों के बीच सदन में कोई ठोस बहस नहीं हो पाई।
सत्र में हुए घटनाक्रम ने जनता के बीच निराशा पैदा की है। विधानसभा सत्र पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं लेकिन जब परिणाम शून्य बराबर हो तो इसका सीधा असर राज्य की लोकतांत्रिक परंपरा और जनता के विश्वास पर पड़ता है। जनता यह सवाल पूछ रही है कि आखिर उसके मुद्दे कब उठेंगे और कब हल होंगे।
निष्कर्षत उत्तराखंड का यह मानसून सत्र राजनीति की खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप में उलझकर महज एक औपचारिकता बनकर रह गया। करोड़ों की लागत और भारी उम्मीदों के बावजूद न तो कानून व्यवस्था पर ठोस चर्चा हो पाई और न ही जनता के ज्वलंत मुद्दों का समाधान निकल सका। विधानसभा के इस सत्र ने यह साबित कर दिया कि जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकताओं में जनता की समस्याएं कितनी पीछे छूट चुकी हैं।


