38th National Games 38वें राष्ट्रीय खेलों में तमिलनाडु की विथ्या रामराज ने 400 मीटर की बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। ऑटो चालक की बेटी विथ्या ने कड़ी मेहनत और लगन से सफलता हासिल की। विथ्या ने कहा कि पिता की मेहनत और विश्वास ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। बताया कि आय का एकमात्र स्रोत पिता का ऑटो है और उसी से घर चलता है।

- राष्ट्रीय खेलों में 400 मीटर बाधा दौड़ को विथ्या रामराज ने 58.11 सेकेंड में पार कर स्वर्णिम सफलता हासिल की
- विथ्या ने कहा, पिता की मेहनत और उनका विश्वास मुझे आज इस मुकाम पर ले आया
देहरादून। 38th National Games: जिस इंसान को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है, वह पूरी लगन और मेहनत से कार्य करता है और एक दिन इतिहास रचता है। तमिलनाडु की विथ्या रामराज ने राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर यह कारनामा कर दिखाया है। उन्होंने 400 मीटर की बाधा दौड़ को 58.11 सेकेंड में पार कर स्वर्णिम जीत दर्ज की है।ऑटो चालक की बेटी विथ्या ने अपना पूरा जीवन अभाव में बिताया, लेकिन कभी भी इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। पिता रामराज के त्याग और संघर्ष ने विथ्या को बचपन से ही जिम्मेदारी का एहसास करा दिया था। यही वजह है कि कड़े परिश्रम और लगन के दम पर विथ्या ने सफलता के शिखर को छूकर अपनी काबिलियत को साबित किया।
विथ्या ने कहा कि पिता की मेहनत और उनका विश्वास मुझे आज इस मुकाम पर ले आया। तमिलनाडु के कोयंबटूर की रहने वाली 26 वर्षीय विथ्या रामराज को जीवन में विषम आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।

ऑटो चालक पिता की इतनी कमाई नहीं थी कि वो बेटी के लिए खेल किट खरीद सकें, लेकिन बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने जमा पूंजी जोड़कर वो सभी जरूरतें पूरी करने की कोशिश की जो एक एथलीट को चाहिए।
विथ्या ने बताया कि घर के आर्थिक हालात कभी अच्छे नहीं रहे। आय का एकमात्र स्रोत पिता का ऑटो है और उसी से घर चलता है। पिता को मुझ पर पूरा भरोसा था कि एक दिन मैं परिवार का नाम रोशन करूंगी। विथ्या ने बताया कि मेरे पास कभी पैसे नहीं हुआ करते थे, लेकिन मेरे पिता ने मुझे खेल किट और अन्य संसाधन दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया। आज मेरे गले में जो स्वर्ण पदक है वो पिता के संघर्षों की बदौलत है।
पिता से किया था स्वर्ण पदक जीतने का वाद
विथ्या ने कहा कि राष्ट्रीय खेलों के लिए उत्तराखंड आते समय मैंने पिता से स्वर्ण पदक जीतने का जो वादा किया था वो पूरा हुआ। विथ्या ने खिलाड़ियों को संदेश दिया है कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। कड़े परिश्रम और दृढ़ निश्चय के दम पर ही बड़े लक्ष्यों का प्राप्त किया जा सकता है।