खनन से बर्बाद हो रहे पहाड़: सुरेश भाई

राज्य

सहयागी संवादाता लोकजन एक्सप्रेस

मनुष्य अपने जीवन की अंतहीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धरती मां के किसी भी भाग से अपने लालच के लिए जल, जंगल, जमीन और उसके पेट से खनिज पदार्थों का इतना अधिक दोहन कर देता है कि वह किसी दूसरे प्राणी के जीवन और जीविका के हिस्से को भी बर्बाद करके कोई पछतावा नहीं करता है। जिसका जीता जागता उदाहरण है कि उत्तराखंड हिमालय के 13 जिलों में से एक बागेश्वर हैं।जहां पर पिछले डेढ दशक से एक ही स्थान पर बार- बार खड़िया खनन का काम चल रहा था। जिसके दुष्प्रभाव से यहां के कांडा तहसील के दर्जनों गांव में पीने का पानी सूख गया।खेतों और गांव में दरारें आयी है। गांव के पाले हुए जंगल काट दिये गये है। ढालदार पहाड़ियों पर अंधाधुंध खड़िया खनन से भूस्खलन होने लगा। लोगों के आवागमन के रास्ते ध्वस्त कर दिये गये है। जिससे स्थानीय महिलाओं को अपने पशुओं के लिए घर तक चारा लाना भी कठिन हो गया। यहां खनन प्रभावित गांव के लोगों ने अपनी बात को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने का जोरदार काम किया है। लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी बात को किसी ने भी नहीं सुना है।पूरी तरह उनकी अनसुनी कर दी गई। परन्तु जब लोग अपनी समस्या को लंबे समय तक उठाते रहते हैं तो न्यायपालिका ध्यान अवश्य देती है। जिसका एक सराहनीय उदाहरण है कि यहां नैनीताल में स्थित उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका के रूप में खनन प्रभावितों की बात को सुनने का फैसला किया है

काबिले गौर है कि उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के लिए 7 नवंबर 2024 को संज्ञान लेते हुए दो अधिवक्ताओं को कोर्ट कमिश्नर के रूप में नियुक्त किया था। जिनके द्वारा उच्च न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। ताजुब है कि रिपोर्ट में जिन तथ्यों को उजागर किया गया है। उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन ने मूक दर्शक होकर खनन के मालिकों को पनाह दी हैं। जिससे लोगों को अपने जल, जंगल,जमीन से बेदखल होना पड़ा।प्रभावित गांवों के लोग लंबे समय तक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे परन्तु उन्होंने कभी उनकी ओर ध्यान तक नहीं दिया है।जिस पर कोर्ट कमिश्नरों की जांच टीम ने प्रभावित क्षेत्र का अध्ययन करके कहा कि आबादी वाले क्षेत्रों में पहाड़ियों के नीचे से खोदकर भूस्खलन रोकने के लिए किसी भी तरह की रिटेनिंग वॉल और अन्य सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए गये हैं।अवैज्ञानिक तरीके से खनन कार्य में खदानों की सीमाओं पर हरित पट्टी और खनन योजना में सावधानी रखने के लिए जो नियमानुसार प्रस्तावित गतिविधियां है,उसे धरातल से गायब किया गया है। सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसे बफरजोन, ढलान पर्यवेक्षण, सुरक्षात्मक ढांचे, जल निकास और जल प्रबंधन की कोई भी व्यवस्था नहीं पायी गयी।खनन प्रभावित गांव में पत्थर, मिट्टी, लकड़ी, पठाल के मकान हो या आधुनिक सीमेंट कंक्रीट दोनों प्रकार के मकानों में दरारें पड़ी हुई है जिसके कारण लोगों की रातें खौफ में गुजर रही है।जबकि यहां की धरती भूकंप से कांपती रहती है। यहां खनन के मालिकों ने लोगों का जीना तो हराम किया ही इसके साथ ही उन्होंने खनन कार्य के दौरान बच्चों से भी निडर होकर काम करवाया है।स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार रमेश पांडे “कृषक”ने जानकारी दी है कि जहां वयस्क लोग भी नहीं जा सकते हैं वहां बच्चों को खड़िया निकालने के लिए संकरी दरारों के भीतर भेजा जाता है। इसके अलावा चिंताजनक है कि खदानों में काम करने वाले मजदूरों को हेलमेट, बूट आदि उपकरण जो निरंतर उपलब्ध कराये जाने चाहिए थे उस पर भी गैर जिम्मेदारी बरती गयी है।खनन जैसे मामलों के विषय में पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट को लोग जानना पसंद करते हैं लेकिन यहां तो इस विषय में बहुत बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन एजेंसी ने क्षेत्र में खनन कार्यों के लिए 373 स्वीकृतियां दी है। जबकि उनके पोर्टल पर 68 फाइलों को ही अपलोड किया गया है। पर्यावरण की रक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसी के द्वारा अपने दायित्व के प्रति सूचनाओं को छुपाना बहुत चिंतनीय है। और खुले रूप में यह पर्यावरण के प्रति अनदेखी है। कोर्ट कमिश्नरों की इस जांच के दौरान खनन प्रभावित क्षेत्रों में पूरी तरह दिन में खनन कार्य बंद करके रखा और उनके लौटने के बाद रात भर खनन का काम चलता रहा है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी यहां खनन कार्य में लगी भारी मशीनों और उनसे उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण,वायु प्रदूषण सहित कई नकारात्मक प्रभावों कीअनदेखी की है जिससे खनन कारोबार को अधिक बल मिला है।कई स्थानों पर अनुमति न मिलने के बाद भी खनन होता रहा है। जिससे खनन प्रभावितों को लम्बे समय तक अपने आंसू बहाने पड़े हैं।नैनीताल हाई कोर्ट ने खनन कारोबारी और उनको नियंत्रित करने वाली जिम्मेदार व्यवस्था की इस गैर जिम्मेदाराना स्थिति के आकलन के बाद 6 जनवरी 2025 को बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर रोक लगा दी है। इसके बाद भी 9 जनवरी को दूसरी सुनवायी की गई है, जिसमें बागेश्वर के जिलाधिकारी भी मौजूद रहे। उच्च अदालत में सुनवाई के दौरान कहा गया कि वन भूमि के अलावा सरकारी भूमि पर भी खनन कारोबारियों ने नियम विरुद्ध काम किया है जिसके बाद ही 160 पट्टाधारकों को नोटिस जारी किया है और यहां पर काम में लगी दर्जनों पोकलेन और जेसीबी मशीनों को जब्त भी किया गया है।उत्तराखंड पर्यावरण विभाग से भी जवाब मांगा जा रहा है।जिस पर फरवरी के दूसरे सप्ताह में फिर सुनवायी होगी।इस पूरे घटनाक्रम में महसूस किया जा रहा है कि पर्वतीय इलाकों में निवास करने वाले छोटे एवं सीमांत किसानों की छोटी-छोटी जोत और उनके प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की ओर मौजूदा व्यवस्था का ध्यान नहीं है। यह भी उदाहरण है कि मातृ सदन हरिद्वार के तीन संतों ने खनन के खिलाफ अपनी जान न्योछावर की है।1980 में प्रसिद्ध गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन के नेतृत्व में भी बागेश्वर में खनन विरोधी आंदोलन सफल रहा था। इसके बावजूद भी खनन के पट्टे ऐसे लोगों को दिए जाते हैं जिसकी कोई मॉनिटरिंग करने की हिम्मत नहीं कर सकता है। इस बीच खनन कारोबारी सुप्रीम कोर्ट में भी गये हैं, जहां उनकी याचिका को खारिज किया गया है।अतः नैनीताल उच्च न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण उदाहरण खनन प्रभावितों के हितों में किया है। इससे पर्यावरण को भी अदालत में न्याय मिला है दूसरी ओर कल्याणकारी व्यवस्था को अपनी गैर जिम्मेदारी का अहसास हुआ होगा। सुरेश भाई {प्रेणता- रक्षा सूत्र आंदोलन}

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